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नमस्कार मित्रो आज के इस पोस्ट में उत्तराखंड के पहाडों से लगातार होते जा रहे पलायन की समस्या पर विस्तार से बताने जाने रहा हूं। अगर आप भी कही न कही उत्तराखंड के पहाडों से जुडे है तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढिए और अधिक से अधिक शेयर कीजिए।
एक प्रसिद्ध कथन : "ऐ सडक तू अब आई है गांव, जब सारा गांव शहर जा चुका है" उत्तराखंड से हो रहे लगातार पलायन को सही रूप में व्यक्त करता है।
उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवम्बर सन् 2000 को उत्तर प्रदेश के 13 पहाडी एव मैदानी जिलों को मिलाकर बनाया गया था। उत्तराखंड को अलग राज्य को बनाने के पीछे उत्तराखंड आंदोलनकारियों की सोच उत्तराखंड के पहाडी जिलों का पिछडापन था, जिस उत्तराखंड की कल्पना हमारे आंदोलनकारियों ने की थी, तथा जिस उददेश्यों को लेकर हम उत्तर प्रदेश से अलग हुए थे, राज्य बनने के 21 वर्षो के बाद भी सभी सरकारें उन मूलभूत उददेश्यों को भूल गई है। चाहे वह भाजपा सरकार हो यह कांग्रेस सरकार हो।
वर्तमान में 14 फरवरी 2022 को होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मददेनजर तमाम पार्टियां अलग अलग तरीके से अपना प्रचार कर रही है। हर बार की तरह पार्टिया पहाडी जिलों से पलायन को रोकने के बडे बडे वादें तो करती है किन्तु सत्ता में आते ही पार्टियां इस समस्या को हर बार नजरअदांज कर देते है। अतः आप सभी उत्तराखंड वासियों को आगामी चुनाव को देखते हुए इस समस्या का अपने जनप्रतिनिधियों से इस विषय पर जरूर बात करें तथा लोगों एवं जन प्रतिनिधियों से आहवान करें कि पहाडों से लगातार खाली होते गांवो की सुध ली जाए और खाली होते पहाडों को बचाया जाएं।
हर बार चुनावों के दौरान तमाम पार्टियां अपनें घोषणापत्र में पलायन रोकने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, संचार, और रोड, बिजली, पानी, तथा कई मूलभूत सुविधाओं को देने के बडे बडे वादें तो करती है। लेकिन सत्ता में आते ही सभी वादें से भटक जाती है।
पहाडों में आज भी उत्तराखंड राज्य गठन के 21 वर्षो बाद भी स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाए नही है। उत्तराखंड की 78 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी है। छोटी से छोटी बीमारियों का इलाज करने के लिये शहरों में आना पडता है। आज भी पहाडों में स्वास्थ्य संबधी छोटी छोटी जांच कराने, चाहे वह अल्टासाउण्ड, एक्सरे, खून की जांच हो व अन्य जांच के लिये बहुत दूर जाना पडता है, जो कि पलायन करने का एक महत्वपूर्ण कारण है।
पहाडों से खाली होते गांव/ घोस्ट विलेज
उत्तराखंड में पलायन के चलते पहाडों में अनेक गांव मानवविहीन होते जा रहे है जिन्हे सरकार द्वारा घोस्ट विलेज का दर्जा दिया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण हाल ही मानवविहीन गांव की फेहरिस्त में एक गांव और जुड गया है पौडी जिलें के कल्जीखाल विकासखंड के बलूनी गाव मं बीते एक दशक से अकेले रह रहे 66 वर्षीय पूर्व सैनिक श्यामा प्रसाद ने भी आखिरकार गांव छोड दिया। अब इस गांव में कोई नही रहता। ऐसे ही अनेक गांव घोस्ट विलेज के उदाहरण बनते जा रहे है। बिंडबना देखिए कि उनके जातें ही गांव में सडक पहुच गई लेकिन इसका इस्तेमाल करने वाला कोई नही है इस बात पर एक कवि का कथन बडा ही सटीक बैठता है कि "ऐ सडक तू अब आई है गांव जब पूरा गांव शहर जा चुका" है।
बलूनी गांव की यह कहानी उत्तराखंड के हजारों गावों की तस्वीर बयां करती है। आज से डेढ दशक पूर्व गांवो में अनेक परिवार निवास करते थे, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य, संचार, सडकें आदि मूलभूत सुविधाओं के अभाव में सभी लोग शहरों की पलायन कर रहे है। पहाडों से सर्वाधिक पलायन युवाओं द्वारा हो रहा है जिनके लिये न कुछ रोजगार की सुविधा है और न ही बच्चें के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था है, बस कुछ बुजुर्ग ही खेती की लालच में और अपनी जन्मभूमि से लगाव होने के कारण रह रहे है। ऐसे में पलायन के सिवा कोई और विकल्प नही दिखाई देता है।
उत्तराखंड के कुल 16,793 गांवो में से अब तक 3000 गांव जनविहीन हो चुके हैं यही सिलसिला जारी रहा तो उत्तराखंड राज्य के उत्तरप्रदेश से अलग होने का कोई फायदा नही दिखाई देता है।
उत्तराखंड में पलायन की तस्वीर
कुल ग्राम पंचायत : 7555
कुल गांव : 16793
अब तक खाली गांव : 3000
सडक सुविधा से वंचित गांव : 5000
खाली घरों की जिलेवार आंकडा
कुल संख्या पलायन करने वाले : 32,00,0000
अल्मोडा : 36401
पौडी : 35654
टिहरी : 33689
पिथौरागढ : 22936
देहरादून : 20625
चमोली : 18535
नैनीताल : 15075
उत्तरकाशी : 11710
चम्पावत : 11281
रूद्रप्रयाग : 10970
बागेश्वर : 10073
पहाडों से पलायन का कारण
:
1: 50 फीसदी लोगो ने रोजगार के लिए घर छोडा
2 : 15 फीसदी लोगों ने
शिक्षा के लिए छोडा
3: 8 फीसदी लोगों ने
स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में छोडा
एक कहावत तो आपने अक्सर सुनी ही होगी कि "पहाड का पानी और पहाड की जवानी पहाड के काम नही आती"। वर्तमान परिपेक्ष्य में यह कहावत उत्तराखंड से लगातार हो रहे युवाओं के पलायन को सही मायनें में व्यक्त करती है। पहाडों से युवाओं का निरन्तर पलायन का कारण पहाडों में रोजगार का अभाव है। जिसके कारण युवा रोजी.रोटी की तलाश में दूसरे शहरों में पलायन करने को मजबूर हो रहे है ! उत्तराखंड के 13 जिलों में 5,31,174 पुरुष और 3,38,588 महिला बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं। इनमें ग्रैजुएट पुरुष बेरोजगार 1,08,248 और महिला ग्रैजुएट 1,11,521 हैं। जाने वालों में 42 फीसदी लोगों की उम्र 26 और 35 वर्ष की है। 25 साल से कम आयु के 28 फीसदी लोग गए हैं। लगभग 70 फीसदी युवा बेरोजगारी के कारण पलायन करने को मजबूर हैए जो की एक सोचनीय विषय है।
उत्तराखंड ग्राम्य विकास और पलायन आयोग :
उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्रों से हो रहे लगातार पलायन एक गंभीर समस्या है। उत्तराखंड सरकार ने लगातार हो रहे पलायन को देखते हुए इस समस्या के सभी पहलुओं की जांच करने के लिए अगस्त 2017 में ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग का गठन किया है, जो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में केन्द्रित विकास के लिए एक दृष्टिकोण विकसित करेगा तथा जमीनी स्तर पर बहु़क्षेत्रीय विकास पर सरकार को सलाह देना है।
आयोग की संरचना :
1. अध्यक्ष मुख्यमंत्री
2. उपाध्यक्ष एक
3. सदस्य पाँच
4. सदस्य सचिव प्रमुख सचिव, सचिव ग्रामीण विकास
5. एडिशनल सदस्य सचिव अपर सचिवए ग्रामीण विकास
आयोग के कार्य :
1. राज्य के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवास की मात्रा और सीमा का आकलन करने के लिए।
2. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के केंद्रित विकास के लिए एक दृष्टिकोण विकसित करने के लिएए जो कि पलायन को कम करने में मदद करेगा और ग्रामीण आबादी के कल्याण और समृद्धि को बढ़ावा देगा।
3. सरकार को ज़मीनी स्तर पर बहु.क्षेत्रीय विकास पर सलाह देने के लिए जो जिला और राज्य स्तरों पर एकत्रित होगा।
4. राज्य की आबादी के उन वर्गों पर सिफारिशें प्रस्तुत करना जो आर्थिक प्रगति से पर्याप्त रूप से लाभान्वित नहीं होने के जोखिम में हैं।
5. उन क्षेत्रों में केंद्रित पहलों की सिफारिश करना और उन पर निगरानी रखना जो ग्रामीण क्षेत्रों के बहुक्षेत्रीय विकास में मदद करेंगे और इस तरह से पलायन की समस्या को कम करने में मदद करेंगे।
6. राज्य सरकार द्वारा उसे सौंपे गए किसी अन्य मामले पर सिफारिशें प्रस्तुत करना।
पलायन का समाधान :
राज्य गठन के 21 वर्षो बाद भी यह बिडंबना है कि उत्तराखंड में जमीन खरीद बिक्री का कानून अन्य हिमालयी राज्यों की तरह कठिन नही बनाया गया है जिससे अन्य राज्यों के अमीर व्यक्ति आसानी से सस्तें दामों पर जमीन खरीद रहे है। इस बार के विधानसभा चुनावों में एक मुददा हिमाचल प्रदेश की तरह ही भू कानून की उत्तराखंड में सख्त आवश्कता है ताकि अन्य राज्यों के अमीर व्यक्तियों द्वारा आसानी से जमीन नही खरीदी जा सकती है।
अत: राज्य गठन के 21 वर्षो के बाद भी पहाडों से लगातार हो रहे पलायन के कारण बंजर और मानव विहीन हो रहे गांवो का सिलसिला जारी रहा, अन्य गैर पर्वतीय व अन्य व्यक्तियों के बसने के कारण आने वाले कुछ वर्षो के बाद देवभूमि उत्तराखंड गठन का मूल उददेश्य ही समाप्त हो जायेगा। और उत्तराखंड आदोलनकारियो का योगदान व्यर्थ चला जायेगा।
अन्त में आप सभी लोगों से निवेदन है कि 14 फरवरी को होने वाले विधान सभा चुनाव में अपने मताधिकार से सोच समझकर ही प्रयोग करें, ऐसे प्रत्याशी न चुने जो किसी प्रकार का लालच दें क्योकि आप का एक एक वोट ही ऐसे प्रत्याशी को चुन सकता है जो आपके क्षेत्र में होने वाली तमाम समस्याओं को ठीक कर सकता है। अपने क्षेत्र की समस्याओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सडकें, बिजली, पानी, रोजगार आदि को देखकर ही अपने प्रत्याशी चुनें। अपना कीमती मतदान उसे ही दें जो आपकी सुनें, आपकी समस्याओं को समझें, नही तो 5 साल तक ये पार्टियां बिल में छुप जाते है और तब ही बाहर आते है जब चुनाव होते है या इनको हमारी जरूरत होती है, राज्य गठन के 21 वर्षो के बाद भी हमारे पहाडों में स्कूल और हॉस्पिटल की दशा बदहाल है।
इस पोस्ट को अधिक से अधिक लोगो तक शेयर करे ताकि उत्तराखंड से हो रहे निरन्तर पलायन को एक जनमुददा बनाया जा सके जिसमें आपकी भागीदारी महत्वपूर्ण है। धन्यवाद।
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