Friday, February 4, 2022

उत्तराखंड में चाय की खेती का इतिहास और इससे जुडे महत्वपूर्ण तथ्य

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 नमस्कार दोस्तों आज में आपको इस पोस्ट के माध्यम से उत्तराखंड में चाय की खेती कब और कहां से शुरू हुई इसके बारे में विस्तार से बताने वाला हूं। यदि आप उत्तराखंड समूह ग की तैयारी कर रहे है। और चाय के शौकीन भी है तो इस पोस्ट को अन्त तक जरूर पढिए।

>     1835 में जब अंग्रेजों ने कोलकाता से चाय के 2000 पौधो की खेप उत्तराखंड भेजी तो उन्हे भी विश्वास नही था कि धीरे धीरे यहां के बडे क्षेत्र में चाय की खेती पसर जाएगी। वर्ष 1838 में पहली बार जब यहां उत्पादित चाय कोलकाता भेजी गई तो कोलकाता चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ने इसे हर मानकों पर खरा पाया। धीरे धीरे देहरादून, कौसानी, मल्ला कत्यूर समेत अनेक स्थानें पर चाय की खेती होने लगी।

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उत्तराखंड में चाय कमेटी कब बनी

>     वानस्पतिक उद्यान सहारनपुर के अधीक्षक डॉ. रोयले ने उत्तराखंड में चाय की खेती हो सकने से पूर्णत सहमत थे। सन 1827 में उन्होने एक रिपोर्ट ईस्ट इंण्डिया कम्पनी को भेजी, 1831 में जब लार्ड विलियम बैटिंक सहारनपुर आया तो उसने भी इस क्षेत्र में चाय उद्योग के विकास हेतु सुझाव दिया बैटिक ने सन 1834 में एक चाय कमेंटी बनी।

>     बॉटनीकल गार्डन सहारनपुर के सुपरइन्टैन्डेंट डॉ फॉकनर और बिल्किवार्थ ने इन जगहों का सर्वेक्षण किया सन् 1835 में दिसम्बर के अन्तिम माह में कलकत्ता से दो हजार पौधों की पहली खेप कुमाउ पहुची थीं। जिसने अल्मोंडा के पास लक्ष्मेश्वर तथा भीमताल के पास भरतपुर में चाय की नर्ससी स्थापित की गई सन 1835 में टिहरी गढवाल के कोठ नामक स्थान पर भी चाय की खेती प्रारंभ की गई।

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कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुः

उत्तराखंड में चाय विकास परियोजना - उत्तर प्रदेश शासनकाल में उत्तराखंड में चाय विकास परियोजना वर्ष 1993-94 में शुरू हुई।

अल्मोडा में चाय विकास बोर्ड की स्थापना - उत्तर प्रदेश शासनकाल में 1996 में चाय विकास बोर्ड की स्थापना हुई। बोर्ड ने चाय की खेती के लिए उपयुक्त पर्वतीय क्षेत्र में चाय उत्पादन की योजना तैयार की।

उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड की स्थापना - 12 फरवरी 2004।

>     सर्वप्रथम 1824 में चाय की खेती को कुमांउ में ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर के द्वारा शुरू किया गया था।

>     1835-36 में लक्ष्मेंश्वर, अल्मोडा में चाय का पहला बागान डॉ फॉल्कनर के द्वारा लगाया था।

>     सन् 1835 में टिहरी गढवाल में चाय की कृषि प्रारंभ की गई थी।

>     मेजर कार्बेट के द्वारा 1841 में हवालबाग, अल्मोडा में चाय का बगीचा स्थापित किया गया था।

>     1843 में गंडोलिया पौडी गढवाल में चाय की  फैक्टी को कैप्टन हडलस्टन के द्वारा स्थापित किया गया था। जो गढवाल में स्थापित होने वाली पहली फैक्टरी थी। इस समय कुमांउ कमीश्नर जार्ज टॉमस लुशिगटन थे।

>     गंडोलिया पौडी गढवाल में डी.ए.चौफिन नामक एक चीनी चाय का काश्तकार के द्वारा सरकारी चाय फैक्टरी की स्थापना की गई, 1844 में देहरादून के पास कौलागढ में सरकारी बागान की शुरूआत डॉ. जेमिसन के नेतृत्व में हुई थी।

>     जॉन हेलिट बैटन के शासनकाल मे 1848 में मिस्टर फॉरचून को चाय की खेती सीखने के लिये चीन भेजा गया था।

>     सन 1850 में ईस्ट इंडिया के आमत्रण पर एसाई वांग एक चीनी चाय विशेषज्ञ गढवाल आये थे।

उत्तराखंड के प्रमुख बागान :

1. न्यूटन का बागान, मिस्टर मुलियन का बागान - भवाली में

2. मिस्टर जोंन्स का बागान - भीमताल में

3. मिस्टर डोरियाज का बागान - रामगढ में

4. जनरल व्हीलर का बागान - घोडाखाल में

5. डॉक्टर फॅाकनर का बागान - अल्मोडा में

6 मेजर कार्बेट का बागान - अल्मोडा में

7. डॉक्टर जेमिसन का बागान - देहरादून में

8. फेड्रिक विल्सन का, पहाडी विल्सन का बागान - उत्तरकाशी में

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