Saturday, January 18, 2020

उत्तराखंड पलायन : आखिर कब तक खाली होते रहेंगे पहाड़ के गांव

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9 नवंबर सन  2000 को उत्तराखंड राज्य की स्थापना एक पहाड़ी राज्य के रूप में हुई थी, जिसका उद्देश्य पर्वतीय लोगों की पहचान को संरक्षित करने, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य और विकास का मॉडल यहां के भौगोलिक परिवेश की तर्ज पर करना था, लेकिन जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है पहाड़शब्द ही अपने अर्थ में बहुत कुछ समेटे हुए है। पहाड़ मतलब कठिन,  बहुत मुश्किल तो कैसे हम उम्मीद कर सकते हैं कि पहाड़ की ज़िन्दगी आसान होगी? ये मुश्किलें तब और बढ़ जाती हैं जब जीवन जीने के मूलभूत संसाधन कम हो जाते हैं तो ऐसे में जीविकोपार्जन के लिए पलायन करना पड़ता है,  लेकिन यह एक मुख्य प्रश्न है कि इस समस्या के कारण और इस से निटने के लिए कितने प्रयास हो रहे हैं!

पहाड़ों से खाली हो गए हजारों गांव :

पहाड़ों से निरंतर हो रहे पलायन का अंदाजा उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग की पहली रिपोर्ट  से लगाया जा सकता है! आयोग की पहली रिपोर्ट के अनुसार 2011 में उत्तराखंड के 1034 गांव खाली हो चुके थे, साल 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके हैं और 405 गांव ऐसे थे, जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं राज्य मे 3.5 लाख से अधिक घर वीरान पड़े हैं, इन खाली और वीरान पड़े गांव में जाने वाला कोई नहीं है सबसे बड़ी बिडंबना तो यह है की राज्य के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र रावत जी के गृह जनपद पौड़ी से 300 से अधिक गांव खाली हो चुके है! रिपोर्ट के अनुसार पलायन के मामले में पौड़ी और अल्मोड़ा जिले शीर्ष पर हैं !

Migration of Uttarakhand



क्या है पहाड़ो से पलायन की वजह :

50 फीसदी ने रोजगार के लिए घर छोड़ा
15
फीसदी ने शिक्षा के लिए
8
फीसदी ने इलाज कराने के लिए

वैसे तो पहाड़ों  में ज़िन्दगी मुश्किल होती है  ये मुश्किलें तब और बढ़ जाती हैं जब जीवन  में मूलभूत संसाधन का अभाव हो  इसलिए पहाड़ों से पलायन का कारण  मूलभूत संसाधनों का अभाव है वर्तमान में पहाड़ो से दो तरह का पलायन देखने को मिलता है एक तो वे लोग हैं जो हमेशा के लिए ही उत्तराखंड छोड़ चुके हैं उनके घर और गांव बंजर हो चुके  हैं और वे वापस पहाड़ों में नहीं जाना चाहते हैं ! दूसरे वे लोग हैं जो अपने बच्चों की पढ़ाई  के लिए पहाड़ी गांवों से देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, हरिद्वार, रामनगर, रूद्रपुर, या हल्द्वानी तथा अन्य शहरों में आ गए है उत्तराखंड के गांवों से शहरों में बच्चों की पढ़ाई के नाम पर हो रहा यह पलायन एक सोचनीय विषय है इसके अलावा पहाड़ो में चिकित्सा स्वास्थ्य,  बिजली,  सड़के व अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी होना भी पलायन का कारण है

Village

बेरोजगारी  के कारण पलायन करने वालों में सर्वाधिक युवा वर्ग :

एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी "पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी, पहाड़ का काम नहीं आती" यह बात आज का समय में उत्तरiखंड में बिलकुल सटीक बैठती है, पहाड़ों से निरंतर हो रहे पलायन करने वालों में सर्वाधिक युवा वर्ग है  जिसका कारण रोजगार के नाम पर पहाड़ों पर कुछ भी नहीं है, जिसके कारण युवा रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे शहरों में पलायन करने को मजबूर हो रहे है ! उत्तराखंड के 13 जिलों में 5,31,174 पुरुष और 3,38,588 महिला बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं। इनमें ग्रैजुएट पुरुष बेरोजगार 1,08,248 और महिला ग्रैजुएट 1,11,521 हैं। जाने वालों में 42 फीसदी लोगों की उम्र 26 और 35 वर्ष की है। 25 साल से कम आयु के 28 फीसदी लोग गए हैं। लगभग 70 फीसदी युवा बेरोजगारी के कारण पलायन करने को मजबूर है, जो की एक सोचनीय विषय है।
berojgari


यह भी  एक बड़ी विडंबना ही है कि उत्तराखंड में जमीन खरीद बिक्री का कानून अन्य हिमालयी राज्यों की तरह कठिन नहीं बनाया गया  और उत्तराखंड राज्य के लोगो के पास पैसों का अभाव होने के कारण तराई और मैदानी क्षेत्रों के अलावा पहाड़ों के भीतर पर्यटन और होटल व व्यावसायिक इस्तेमाल की जमीनें  राज्य के बाहरी यानी गैर उत्तराखंडी मूल के लोगों ने बहुत ही सस्ते दामों पर खरीद लिया है,  जिससे राज्य में बेरोजगारी की समस्या बढ़ने के कारण निरंतर पलायन हो रहा है
old house
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 अतः अब सोचनीय विषय यह है कि पहाड़ों से निरंतर हो रहे  पलायन के कारण वहां आबादी घटने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा और गैर पर्वतीय अन्य राज्यों लोगों का वहां बसने का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले 10 साल बाद देवभूमि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में वहां के मूल निवासियों के अल्पमत में आने से इस हिमालयी राज्य के गठन का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा
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