Friday, January 28, 2022

जानिए कौन हैं 2022 में पद्मश्री पाने वाली बसंती बहन, जिनका जीवन पर्यावरण

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वर्ष 2022 के पद्म पुरूस्कारों की घोषणा हो चुकी है जिसमें उत्तराखड से तीन महिलाओं समेत 34 महिलाओं को पद्मश्री से नवाजा गया है। उत्तराखंड से माधुरी बडथ्वाल, बंदना कटारिया, व बसंती देवी को पद्मश्री मिला है। आज हम आपकों समाज सेविका बसंती देवी जिन्हे सभी बसंती बहन के नाम से भी जाना जाता है। उनकें बारे में विस्तार से जानने के लिए इस पोस्ट को अन्त तक जरूर पढें।

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बंसती देवी मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ जिले के बस्तडी सिंगाली गांव की रहने वाली है। और ये एक समाज सेविका है। पर्यावरण के लिए समर्पित बसंती देवी या बसंती दीदी को पद्मश्री पुरूस्कार 2022 देने की घोषणा की गई है।

कौन है पद्मश्री बंसती देवी/बसंती दीदी

बंसती देवी उत्तराखंड की एक प्रसिद्व समाज सेविका है। उन्होने उत्तराखंड के पर्यावरण संरक्षण, पेडों व नदी को बचाने के लिए अपना योगदान दिया है। बसंती देवी कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम में रहती है। बसंती देवी ने पर्यावरण से लेकर समाज की कई कुरीतियों को दूर करने के लिए महिला समूहों का आहवान किया। एक तरफ तो उन्होनें कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से जंगल को बचाने की मुहिम शुरू की तो दूसरी और घरेलू हिसा और महिलाओं पर होने वाले प्रताडनाओं को रोकने के लिए जनजागरण किए।

यह बसंती देवी के प्रयास का ही फल है कि पंचायतों के सशक्तिकरण में उनके प्रयास का असर दिखा।

बसंती देवी का जीवन परिचय :

बसंती देवी या बसंती दीदी मूल रूप से पिथौरागढ के बस्तडी सिंगाली गांव की रहने वाली है। बसंती देवी की शिक्षा की बात करे तो शादी से पहले तक वह मात्र साक्षर थी। 12 साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया था लेकिन कुछ समय बाद उनके पति का निधन हो गया, इसके बावजूद उन्होने हिम्मत नही हारी। उसके बाद बसंती देवी ने दूसरा विवाह नही किया। बाद में पिता का साथ मिला तो वापस मायके आई और पढाई में जुट गई और उन्होनें इंटर पास किया। 12वी करने के बाद बसंती गांधीवादी समाजसेविका राधा के संपर्क में आई और उनसे प्रभावित होकर कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में ही आकर बस गई।

बसंती देवी ने महिलाओं के लिए संगठन बनायें एवं उन्हें समाज सेवा के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया और उन्होने अल्मोडा जिलें के धौलादेवी ब्लॉक में आयोजित बालबाडी कार्यक्रमों में शामिल होकर समाजसेवा शुरू की। बसंती देवी ने महिला समूहों का गठन कर उनको सामाजिक कार्यो में आगे लाई। साल 2003 में बसंती देवी ने कोसी घाटी के गांवों मे महिलाओं को संगठित करने का काम शुरू किया। तथा उन्होनें महिला सशक्तिकरण पर भी काफी बल दिया।

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बसंती देवी ने कौसानी से लोद तक पूरी घाटी में करीब 200 गांवो की महिलाओं का समूह बनाया। उन्होने महिला सशक्तिकरण पर बल देते हुए साल 2008 में महिलाओं की पंचायतों में स्थिति मजबूत करने पर काम किया। पंचायतों में महिलाओ को आरक्षण मिला तो उन्होने घरेलू हिंसा और पुरूषों की प्रताडना झेल रही महिलाओं की मुक्ति के लिए मुहिम शुरू की। 2014 में उन्होंने 51 गांवो की 150 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।

उन्होने महिलाओं को अपने जंगल के सरंक्षण के लिए समुदाय आधारित संगठन बनाने के लिए राजी किया।  उन्होने वन अधिकारियों के साथ समझौता किया, जिसके बाद न तो वन विभाग और न ग्रामीणों ने लकडी काटी। वन विभाग की सूखी लकडी पर ग्रामीणों के अधिकार को मान्यता मिली।

मार्च 2016 में राष्टपति प्रणव मुखर्जी ने राष्टपति भवन में बसंती देवी को नारी शक्ति पुरूस्कार से सम्मानित कियां। उन्हें पर्यावरण के लिए फेमिना वूमन जूरी अवार्ड 2017 दिया गया।

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